29-09-2022 |
टैक्स देना एक ऐसी ज़िम्मेदारी है, जिसे हर भारतीय नागरिक को पूरा करना होता है. और नागरिकों को अपना कर्तव्य पूरा करने में मदद करने के लिए, भारत सरकार और इनकम टैक्स* विभाग ने टैक्स चुकाने और टैक्स* रिटर्न ऑनलाइन फाइल करने की प्रक्रिया को आसान बना दिया है. हालाँकि, टैक्स* कलेक्शन की प्रक्रिया शास्त्रों के समय से चली आ रही है.
आज के समय में, टैक्स की वसूली करदाताओं की इनकम और कैटेगरी के आधार पर होती है, जैसा कि प्राचीन समय में था. तब से, भारतीय टैक्स* सिस्टम में कई तरह से तेज़ी से बदलाव आया है. आज, भारत में लाइफ इंश्योरेंस पर इनकम टैक्स* रिटर्न फाइल करना भी इनकम टैक्स* विभाग की ऑफिसियल वेबसाइट पर ऑनलाइन किया जा सकता है.
डायरेक्ट टैक्स कितनी दूर आ गए हैं, इसका संक्षिप्त विवरण यहां दिया गया है.
डायरेक्ट टैक्स की परिभाषा क्या है?
डायरेक्ट टैक्स* उस प्रकार का टैक्स* है, जिसका भुगतान टैक्सपेयर द्वारा उनकी इनकम, कमाई और मुनाफे पर किया जाता है. यह टैक्स* गुड्स और सर्विस पर नहीं बल्कि टैक्सपेयर पर लगाया जाता है. टैक्सपेयर कोई व्यक्ति या ऑरगनाइजेशन हो सकती है, और टैक्स* उस प्राधिकारी द्वारा वसूला जाता है, जो इसे लागू करता है, यानी, भारत सरकार और यह सरकार के लिए रेवेन्यू का एक स्रोत है.
डायरेक्ट टैक्स की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसके भुगतान की ज़िम्मेदारी किसी अन्य व्यक्ति या संस्था को नहीं दी जा सकती, जैसा कि इनडायरेक्ट टैक्स के मामले में होता है.
डायरेक्ट टैक्स इतिहास क्या है?
पहला टैक्स* ढांचा 1922 में इनकम टैक्स विभाग द्वारा तैयार किया गया था जिसमें इनकम टैक्स* अधिकारियों के लिए खास शब्दावली के बारे में बताया गया था. 1922 से, भारतीय टैक्स प्रणाली में बहुत तेज़ी से बदलाव और संशोधन हुए हैं. दूसरा विश्व युद्ध, जिसके दौरान बिजनेस कम्युनिटी ने बहुत अच्छा मुनाफ़ा कमाया, में भी 1940-1947 के बीच एक्स्ट्रा प्रॉफिट टैक्स* और बिज़नेस प्रॉफ़िट्स टैक्स* की शुरुआत हुई, जिन्हें बाद में 1946 में निरस्त कर दिया गया. इस टैक्स* का प्रशासन जो इनकम टैक्स विभाग को सौंप दिया गया था, उसे भी 1949 में निरस्त कर दिया गया था.
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कई नीतिगत और प्रशासनिक टैक्स सुधार किए गए.
उदाहरण के लिए, नीतिगत सुधारों के तहत, टैक्स* दरें कम की गईं, टैक्स कानून, ख़ासकर कैपिटल गेन से संबंधित कानूनों को सरल बनाया गया, अनुमानित टैक्सेशन के उपाय लाए गए और टैक्स* बेस को चौड़ा किया गया.
प्रशासनिक सुधारों के तहत, टैक्स* कलेक्शन सिस्टम को कंप्यूटरीकृत किया गया था, जिसमें टैक्सपेयर को विशिष्ट पहचान नंबर देना शामिल था, और विभाग की व्यावसायिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए मानव संसाधन को फिर से डिज़ाइन किया गया था.
टैक्स कलेक्शन का डिजिटाइज़ेशन
इनकम टैक्स विभाग में टैक्स* सिस्टम को 1981 में कम्प्यूटरीकृत किया गया था जब डायरेक्टरेट ऑफ़ इनकम टैक्स* (सिस्टम) की स्थापना की गई थी. चालान प्रोसेस करने के लिए मेट्रोपॉलिटन शहरों में SN-73 सिस्टम का इस्तेमाल करने वाले तीन कंप्यूटर सेंटर 1984-85 के बीच स्थापित किए गए थे. 1989 तक, 33 प्रमुख शहरों में यह सेटअप हो गया था, और कम्प्यूटरीकृत गतिविधियों में पैन (परमानेंट अकाउंट नंबर) और टैन (टैक्स कलेक्शन अकाउंट नंबर) का एलॉटमेंट और पेरोल की एकाउंटिंग शुरू हो गई थी.
टैक्सेशन सिस्टम के डिजिटलीकरण के प्रमुख स्थलों में टैक्स* रिटर्न की ई-फाइलिंग और इनकम टैक्स विभाग की ऑफिशियल वेबसाइट के जरिए टैक्स का इलेक्ट्रॉनिक भुगतान शामिल था. 2006 में, टैक्स रिटर्न फाइल करने का डिजिटाइजेशन एक प्रोजेक्ट के जरिए किया गया, जिसने इनकम टैक्स* रिटर्न की ई-फाइलिंग (इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग) में मदद की. बिना किसी अधिकार क्षेत्र के ई-फाइल और पेपर रिटर्न की थोक प्रोसेसिंग के उद्देश्य से 2009 में बेंगलुरु में एक सेंट्रलाइज्ड प्रोसेसिंग सेंटर (सीपीसी) शुरू किया गया था.
इलेक्ट्रॉनिक रिटर्न फाइल करने और ऑनलाइन टैक्स* पेमेंट का एक बड़ा फायदा यह है कि टैक्स* कलेक्शन प्रोसेस में मैन्युअल गलतियों की गुंजाइश कम होती है, और टैक्सपेयर ऑनलाइन टैक्स* पेमेंट और ऑनलाइन टैक्स* रिटर्न फाइल करते समय काफी समय बचा सकते हैं.
आज तक, ये अलग-अलग प्रकार के डायरेक्ट टैक्स हैं जिनका ऑनलाइन भुगतान किया जा सकता है.
डायरेक्ट टैक्स के प्रकार
- इनकम टैक्स — इनकम टैक्स* एक तरह का डायरेक्ट टैक्स* है जिससे हर कोई परिचित है. किसी व्यक्ति की उम्र और कमाई के आधार पर इनकम टैक्स* का भुगतान करना होता है. भारत सरकार द्वारा निर्धारित टैक्स* स्लैब से आपको यह जानने में मदद मिलती है कि इनकम टैक्स* कितना देना है. अपने टैक्स* रिटर्न का क्लेम करने के लिए, आपको हर साल इनकम टैक्स* रिटर्न (आईटीआर) .फाइल करना होगा.
- कॉर्पोरेट टैक्स – कॉर्पोरेट टैक्स* का भुगतान घरेलू कंपनियों द्वारा किया जाता है, लेकिन उनके शेयरधारकों द्वारा नहीं. यह डायरेक्ट टैक्स* उन विदेशी कंपनियों और निगमों पर भी लगाया जाता है, जिन्होंने भारत में बिजनेस शुरू किया है और यहाँ कमाई कर रहे हैं. इस टैक्स* के तहत, संपत्ति की बिक्री से होने वाली इनकम, तकनीकी सेवाओं की फीस, रॉयल्टी, ब्याज़ और डिविडेंड पर टैक्स लगता है. कॉर्पोरेट टैक्स* को इसमें डिवाइड किया जाता है:
- सिक्योरिटीज ट्रांजेक्शन टैक्स (एसटीटी): स्टॉक मार्केट सिक्योरिटीज़ की बिक्री और खरीद के ज़रिये ट्रांजेक्शन से होने वाली इनकम सिक्योरिटीज ट्रांजेक्शन टैक्स* के लिए योग्य होगी.
- डिविडेंड डिस्ट्रब्यूशन टैक्स (डीडीटी): अगर कोई घरेलू कंपनी अपने शेयरधारकों को डिविडेंड राशि की घोषणा, डिस्ट्रब्यूशन या भुगतान करती है, तो उन पर डिविडेंड डिस्ट्रब्यूशन टैक्स* लगाया जाता है. विदेशी कंपनियों को डीडीटी का भुगतान नहीं करना पड़ता है.
- मिनिमम अलटरनेट टैक्स (एमएटी): मिनिमम अलटरनेट टैक्स* उन कंपनियों और लिमिट लायबिलिटी पार्टनरशिप (एलएलपी) के लिए लागू है, जिन्हें बुक प्रॉफिट होता है, लेकिन वे इनकम टैक्स* अधिनियम के तहत टैक्स का भुगतान नहीं करती हैं, क्योंकि उनकी कैलकुलेट की गई इनकम शून्य है. एमएटी की तरह, लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप (एलएलपी) पर अलटरनेट मिनियम टैक्स* (एएमटी) लगाया जाता है.
हालाँकि, यह किसी व्यक्ति, हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) या साझेदारी पर लागू नहीं होता है, अगर कुल एडजस्टेड इनकम ₹20 लाख से कम है.
- कैपिटल गेन्स टैक्स: यह डायरेक्ट टैक्स* निवेश परिसंपत्तियों की बिक्री से होने वाली इनकम पर लगाया जाता है और इसका भुगतान किया जाता है. बॉन्ड, शेयर, रियल एस्टेट आदि में निवेश को कैपिटल एसेट माना जाता है. होल्डिंग अवधि के आधार पर, टैक्स* को लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स* (36 महीनों से अधिक समय के लिए रखी गई सिक्योरिटीज के लिए) और शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन टैक्स* (36 महीने से कम समय के लिए रखी गई सिक्योरिटीज के लिए) में क्लासिफ़ाइ किया जा सकता है.
भारत में इंश्योरेंस पॉलिसी जैसे सेविंग के तरीके, हालांकि पॉलिसीहोल्डर के हाथों में टैक्स योग्य होने पर भी टैक्स* बेनिफिट मिलते हैं. टाटा एआईए लाइफ इंश्योरेंस की लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी के साथ, आप मौजूदा टैक्स* कानूनों के अनुसार पॉलिसी प्रीमियम और उससे मिलने वाली इनकम पर टैक्स* कटौती और बेनिफिट्स का क्लेम कर सकते हैं.
निष्कर्ष
पिछले कुछ सालों में, सिर्फ़ टैक्सेशन सिस्टम ही नहीं, बल्कि इनकम टैक्स* विभाग और इसके नियमों में भी कई संगठनात्मक और विनियामक बदलाव हुए हैं. समय के साथ, टैक्स* प्रक्रिया के कम्प्यूटरीकरण के बाद, डिजिटाइजेशन ने भी संभाल लिया, जिससे टैक्सपेयर किसी भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के जरिए, कहीं से भी अपने टैक्स* स्टेटमेंट को एक्सेस कर सकते हैं.
इन बदलावों के साथ, भारतीय टैक्स* सिस्टम में रेवेन्यू कलेक्शन में वृद्धि, बिज़नेस प्रक्रियाओं को फिर से डिज़ाइन किया गया और टैक्स-पेयर सेवाओं में ज़्यादा सुधार देखा गया है.
L&C/Advt/2023/Aug/2498