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भारत में टैक्स स्लैब के लिए शुरुआती गाइड

इनकम टैक्स, केंद्र सरकार द्वारा व्यक्तियों, हिंदू अविभाजित परिवारों (एचयूएफ) और व्यवसायों पर एक साल के दौरान उनके द्वारा अर्जित इनकम पर लगाया जाने वाला टैक्स है. यह टैक्स एक अनिवार्य टैक्स है और यह एक वित्तीय वर्ष में हुई कुल सकल आय के आधार पर तय किया जाता है. कुछ टैक्स छूट भी हैं जिनका इस्तेमाल टैक्सपेयर टैक्स आउटपुट कम करने के लिए कर सकता है. उदाहरण के लिए, जो लोग रेगुलर इनकम की गारंटी के लिए बचत प्लान में निवेश करते हैं या लाइफ इंश्योरेंस प्लान खरीदते हैं, वे लागू टैक्स कानूनों के मुताबिक टैक्स लाभ ले सकते हैं.  

 

साल 2020 में, वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने घोषणा की थी कि इनकम टैक्स फाइल करने की दो व्यवस्थाएं होंगी. इन्हें वर्तमान में पुरानी व्यवस्था और नई व्यवस्था के नाम से जाना जाता है. इनकम टैक्स स्लैब और इसके अनुरूप टैक्स दरें चुनी हुई व्यवस्था पर निर्भर करती हैं.

 

यह लेख विभिन्न व्यक्तियों और संस्थाओं के लिए भारत में टैक्स स्लैब के बारे में बात करता है, ताकि टैक्स फाइलिंग में टैक्सपेयर की मदद की जा सके. 

 

टैक्स स्लैब क्या हैं?
 

इनकम टैक्स स्लैब से तात्पर्य इनकम के हर वर्ग के लिए लगने वाली टैक्स दर से है. भारत में, सरकार टैक्स की बढ़ती दरों का इस्तेमाल करती है. इसलिए, इनकम जितनी ज़्यादा होगी, इनकम पर टैक्स उतना ही ज़्यादा लगेगा और इसके विपरीत. ये टैक्स स्लैब अलग-अलग व्यक्तियों के लिए अलग-अलग हैं, जैसे:

 

  • 60 साल से कम उम्र के व्यक्तिगत टैक्सपेयर.

  • 60 से 80 वर्ष के बीच के वरिष्ठ नागरिक.

  • 80 साल से अधिक उम्र के सुपर सीनियर सिटीजन.

 

टैक्स स्लैब की कैलकुलेशन मुख्य रूप से टैक्सपेयर की ग्रॉस इनकम के साथ उनकी उम्र के अनुसार की जाती है. ग्रॉस इनकम सभी इनकम का कुल योग है, जैसे कि सैलरी से मिलने वाली इनकम, निवेश पर मिलने वाली इनकम, हाउस प्रॉपर्टी से होने वाली इनकम, फिक्स्ड डिपॉजिट जैसे बचत प्लान से मिलने वाली इनकम आदि.

 

भारत में पुरानी और नई व्यवस्था के तहत टैक्स स्लैब कौन से हैं?
 

 

नई और पुरानी टैक्स व्यवस्थाएं अलग-अलग टैक्स स्लैब का पालन करती हैं. नई टैक्स व्यवस्था दोनों में से निचली व्यवस्था के रूप में सामने आती है, लेकिन इसकी कुछ सीमाएँ हैं, जिनमें से पहली है टैक्स छूट है.

 

उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति पुरानी व्यवस्था के तहत टैक्स बचाने के उद्देश्य से जीवन बीमा प्लान में निवेश कर सकता है, लेकिन अगर वही व्यक्ति नई व्यवस्था अपनाता है, तो वे अपने निवेश का इस्तेमाल टैक्स छूट के उद्देश्य से नहीं कर पाएंगे.

 

भारत में पुरानी और नई व्यवस्था के तहत इनकम टैक्स स्लैब इस प्रकार हैं:

 

 1.  60 वर्ष से कम उम्र के टैक्सपेयर के लिए पुरानी कर व्यवस्था

 

इनकम टैक्स स्लैब

टैक्स रेट

₹2.5 लाख से कम

कोई टैक्स नहीं

₹2.5 लाख से लेकर ₹3 लाख तक

5%

₹3 लाख से लेकर ₹5 लाख तक

5%

₹5 लाख से लेकर ₹7.5 लाख तक

20%

₹7.5 लाख से लेकर ₹10 लाख तक

20%

₹10 लाख से लेकर ₹12.5 लाख तक

30%

₹12.5 लाख से लेकर ₹15 लाख तक

30%

₹15 लाख से ऊपर

30%

 

 2. 60 से 80 वर्ष की आयु के टैक्सपेयर के लिए पुरानी कर व्यवस्था

 

 

इनकम टैक्स स्लैब

टैक्स रेट

₹2.5 लाख से कम

NIL

₹2.5 लाख से लेकर ₹3 लाख तक

NIL

₹3 लाख से लेकर ₹5 लाख तक

5%

₹5 लाख से लेकर ₹7.5 लाख तक

20%

₹7.5 लाख से लेकर ₹10 लाख तक

20%

₹10 लाख से लेकर ₹12.5 लाख तक

30%

₹12.5 लाख से लेकर ₹15 लाख तक

30%

₹15 लाख से ऊपर

30%

 

3. 80 वर्ष से अधिक आयु के टैक्सपेयर के लिए पुरानी कर व्यवस्था

 

इनकम टैक्स स्लैब

टैक्स रेट

₹2.5 लाख से कम

NIL

₹2.5 लाख से लेकर ₹3 लाख तक

NIL

₹3 लाख से लेकर ₹5 लाख तक

NIL

₹5 लाख से लेकर ₹7.5 लाख तक

20%

₹7.5 लाख से लेकर ₹10 लाख तक

20%

₹10 लाख से लेकर ₹12.5 लाख तक

30%

₹12.5 लाख से लेकर ₹15 लाख तक

30%

₹15 लाख से ज़्यादा

30%

 

*2021 के बजट में, वित्त मंत्री ने यह भी घोषणा की कि 75 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों, जिनके पास सिर्फ़ पेंशन और ब्याज़ से कमाई होती है, उन्हें इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) फाइल करने की कोई ज़रूरत नहीं है

 

4. सभी श्रेणियों के लिए नई कर व्यवस्था

 

इनकम टैक्स स्लैब

टैक्स रेट

B₹2.5 लाख से कम

NIL

₹2.5 लाख से लेकर ₹3 लाख तक

5%

₹3 लाख से लेकर ₹5 लाख तक

5%

₹5 लाख से लेकर ₹7.5 लाख तक

10%

₹7.5 लाख से लेकर ₹10 लाख तक

15%

₹10 लाख से लेकर ₹12.5 लाख तक

20%

₹12.5 लाख से लेकर ₹15 लाख तक

25%

₹15 लाख से ऊपर

30%

 
वेतनभोगी व्यक्ति दोनों व्यवस्थाओं में से किसी एक को कैसे चुन सकते हैं?
 

पुरानी और नई टैक्स व्यवस्था में से किसी एक को चुनने का फ़ैसला पूरी तरह से टैक्सपेयर पर निर्भर करेगा और ये अलग-अलग लोगों के लिए अलग होगा. आखिरकार, सही फैसला इस बात पर निर्भर करेगा कि इनमें से किस टैक्स स्लैब के परिणामस्वरूप टैक्स आउटपुट कम मिलता है. लेकिन सामान्य नियम के तौर पर, वे टैक्सपेयर जिनके पास कोई टैक्स -बचत निवेश नहीं है, वे नई टैक्स व्यवस्था चुन सकते हैं. इस तरह वे कम टैक्स दरों के साथ अपनी टैक्स देनदारी कम कर सकते हैं.

 

हालांकि, ऐसे टैक्सपेयर जिनके पास निवेश है, जैसे पब्लिक प्रोविडेंट फंड्स (पीपीएफ), इंश्योरेंस प्लान्स, राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस), आदि, को पुरानी टैक्स व्यवस्था में ज़्यादा मूल्य मिल सकता है क्योंकि इससे उन्हें टैक्स में छूट मिल सकती है और अंततः उनका टैक्स आउटपुट कम हो सकता है. इस संबंध में किसी वित्तीय सलाहकार या चार्टर्ड अकाउंटेंट से संपर्क करने की सलाह दी जा सकती है.

 

यहाँ ध्यान देने वाली एक और बात यह है कि बचत के लिए टैक्स ही एकमात्र निर्धारण नहीं है. टैक्स बचाना ज़रूरी है, लेकिन इससे निवेश पर ध्यान देने और भविष्य की ज़रूरतों के लिए बचत करने पर भी मदद मिल सकती है. इसलिए, जितना हो सके निवेश करने की कोशिश करें.

 

टाटा एआईए लाइफ़ इंश्योरेंस जैसी कंपनियों से लाइफ़ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदना शुरुआत करने का एक अच्छा तरीका हो सकता है. यह न केवल पुरानी व्यवस्था के तहत टैक्स बचाने में मदद कर सकता है, बल्कि भविष्य की वित्तीय सुरक्षा भी सुनिश्चित कर सकता है और आपात स्थिति में उस पर भरोसा करने की सुविधा भी सुनिश्चित कर सकता है.

 

संक्षिप्त में

इनकम टैक्स के नियम समय के अनुसार बदलते रहते हैं, इसलिए यह हर समय अप-टू-डेट रहने में मदद करता है. इसके अलावा, किसी एक को चुनने से पहले विभिन्न टैक्स स्लैब के बारे में किसी भी संदेह के लिए किसी पेशेवर से सलाह ज़रूर लें.

 

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