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इनकम टैक्स रिटर्न फाइलिंग पर 7 सबसे कॉमन अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

19-07-2022 |

इनकम टैक्स फाइलिंग ज़्यादातर लोगों के लिए सबसे मुश्किल कामों में से एक है. हालाँकि, ऑनलाइन इनकम टैक्स रिटर्न के साथ यह प्रोसेस अब आसान हो गया है. आप कुछ ही मिनटों में अपना इनकम टैक्स रिटर्न फाइल कर सकते हैं, अगर आपके पास अपने सभी ज़रूरी दस्तावेज़ मौजूद हैं. आपको बस एक कंप्यूटर या लैपटॉप और एक स्थिर इंटरनेट कनेक्शन चाहिए. लेकिन अगर आपको अभी भी कोई संदेह है, तो रिटर्न फाइल करने की प्रोसेस को स्पष्ट करने और आसान बनाने के लिए यहां कुछ सामान्य सवालों के जवाब दिए गए हैं. 



इनकम टैक्स* रिटर्न फाइलिंग के संबंध में 7 सबसे ज़्यादा पूछे जाने वाले सवाल



यहाँ सबसे ज़्यादा पूछे जाने वाले सवाल दिए गए हैं:

  1. इनकम टैक्स* क्या होता है?


    इनकम टैक्स* एक ऐसा टैक्स* है, जिसे भारत सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष में किसी व्यक्ति द्वारा कमाई गई इनकम पर लगाया जाता है.

  2. इनकम टैक्स* के लिए कम्प्यूटेशन पीरियड क्या है? 


    इनकम टैक्स* का भुगतान सालाना किया जाता है. यह 1 अप्रैल से 31 मार्च तक शुरू होने वाले प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए लगाया जाता है. इसका भुगतान इनकम होने के बाद से अगले वित्तीय वर्ष में किया जाता है, जिसे मूल्यांकन वर्ष भी कहा जाता है.

  3. इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के लिए क्या ज़रूरी शर्तें हैं?

    • पैन: आपको अपने बैंक खाते से लिंक करके अपना परमानेंट अकाउंट नंबर (पैन) डालना होगा. यह आपको अपने पैन कार्ड, फॉर्म 16, फॉर्म 26AS या फॉर्म 12BB पर मिल सकता है. 

    • आधार कार्ड: इनकम टैक्स* एक्ट, 1961 की धारा 139AA के अनुसार, अपने टैक्स* रिटर्न पर आधार कार्ड की जानकारी सबमिट करना अनिवार्य है. आधार कार्ड भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) द्वारा जारी किया जाता है. अगर आपका आधार कार्ड अभी तक जारी नहीं किया गया है, तो आप एनरोलमेंट आईडी प्रदान कर सकते हैं. अगर आपने अपना आधार कार्ड खो दिया है, तो आप इसे यूआईडीएआई की वेबसाइट से ऑनलाइन डाउनलोड कर सकते हैं.

    • फॉर्म 16: फ़ॉर्म 16 एम्प्लायर से लिया जा सकता है और इसमें आपकी सैलरी और स्रोत से काटे गए टैक्स* की राशि (टीडीएस) का विवरण दिया जा सकता है. इसमें एचआरए छूट जैसे किसी भी अलाउंस शामिल हैं.

    • फॉर्म 16A, फॉर्म 16B, और फॉर्म 16C: फ़ॉर्म 16A में आपकी सैलरी के अलावा अन्य स्रोतों से प्राप्त इनकम और उस पर टीडीएस काटे जाने की जानकारी शामिल है, जैसे कि फिक्स्ड या रेकरिंग डिपॉजिट. फ़ॉर्म 16B में रियल एस्टेट प्रॉपर्टी की बिक्री से होने वाली इनकम के बारे में जानकारी होती है. अगर आप कोई प्रॉपर्टी किराए पर ले रहे हैं, तो आपको फ़ॉर्म 16C की भी ज़रूरत होगी.

    • बैंक अकाउंट डिटेल: आपको अपने बैंक अकाउंट की जानकारी दर्ज करनी होगी, जैसे कि अकाउंट नंबर, बैंक का नाम और बैंक ब्रांच का आईएफएससी कोड. अगर आपके पास बहुत से अकाउंट हैं, तो आपको हर बैंक की जानकारी दर्ज करनी होगी. हालांकि, आपको प्राइमरी अकाउंट के तौर पर किसी एक का चयन करना होगा. यह वह अकाउंट है जहाँ आपको टैक्स* रिफ़ंड मिलेगा. आप इन डिटेल्स के लिए अपने बैंक से संपर्क कर सकते हैं या अपने नेट बैंकिंग अकाउंट, बैंक पासबुक, चेक आदि पर उन्हें ढूंढ सकते हैं.
       

    • फॉर्म 26AS: फ़ॉर्म 26AS में बैंक, आपके एम्प्लायर और अन्य ओर्गनइजेशन द्वारा काटे गए टीडीएस के साथ-साथ साल के दौरान चुकाए जाने वाले एडवांस टैक्स* सेल्फ-असेसमेंट टैक्स* जैसी जानकारी शामिल है. आप इस फ़ॉर्म को इनकम टैक्स* इंडिया ई-फाइलिंग वेबसाइट से डाउनलोड कर सकते हैं.

    इसके अलावा, अगर आप लोन पर टैक्स* कटौती, टैक्स* बचाने वाली स्कीम जैसे इक्विटी से जुड़ी सेविंग्स स्कीम्स (ईएलएसएस), एफडी आदि का दावा कर रहे हैं, तो आपको लोन स्टेटमेंट की ज़रूरत होगी. अगर आप लाइफ इंश्योरेंस खरीदते हैं, तो आप टैक्स* कटौती का क्लेम करने के लिए अपने पॉलिसी दस्तावेज़ सबमिट कर सकते हैं. इसके अलावा, आपको स्टॉक, म्यूचुअल फंड आदि की बिक्री से होने वाले कैपिटल गेन के विवरण, अगर आपने किसी विदेश से इनकम अर्जित की है, तो विदेशी इनकम का प्रूफ और शेयर और म्यूचुअल फंड से होने वाले डिविडेंड इनकम का विवरण दर्ज करना होगा.

  4. किस महीने में इनकम टैक्स* काटा जाता है?

    एम्प्लायर हर महीने सोर्स पर मिलने वाली सैलरी से टैक्स* काट लेते हैं. कुल टैक्स* को 12 महीनों में विभाजित किया जाता है और इसे हर महीने की सेलरी में से काट लिया जाता है. हालाँकि, सैलरी में बढ़ोतरी या ड्रॉप होने, अर्जित बोनस वगैरह के मामले में, इसे उस महीने के अंत में एडजस्ट किया जाता है जब पैसा आपके अकाउंट में जक्रेडिट किए जाते हैं

  5. टैक्स* की दो व्यवस्थाएं कौन सी हैं?

    पुरानी टैक्स* व्यवस्था से आप जीवन बीमा, ईएलएसएस, नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस), और इसी तरह के अन्य निवेश और बचत जैसे टैक्स* कटौती का इस्तेमाल कर सकते हैं. इस व्यवस्था की टैक्स* दरें अपेक्षाकृत ज़्यादा हैं, लेकिन आप कटौती के ज़रिये अपनी टैक्स योग्यता को कम कर सकते हैं. दूसरी तरफ़, नई कर* व्यवस्था इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने पर किसी भी टैक्सकटौती की सुविधा नहीं देती है. हालाँकि, टैक्स* की दरें अपेक्षाकृत कम हैं.

  6. दोनों वयवस्था के लिए टैक्स* स्लैब यहां दिए गए हैं:

    इनकम टैक्स* ब्रैकेट

    पुरानी कर* वयवस्था

    नई कर* वयवस्था

    ₹2,50,000 तक

    कुछ नहीं

    कुछ नहीं

    ₹2,50,001 - ₹5,00,000

    5%

    5%

    ₹5,00,001 - ₹7,50,000

    ₹12500 + ₹5,00,000 से अधिक की इनकम का 20%

    ₹12500 + ₹5,00,000 से अधिक की इनकम का 10%

    ₹7,50,001 - ₹10,00,000

    ₹62500 + ₹7,50,000 से अधिक की इनकम का 20%

    ₹37500 + ₹7,50,000 से अधिक की इनकम का 15%

    ₹10,00,001 - ₹12,50,000

    ₹112500 + ₹10,00,000 से अधिक की इनकम का 30%

    ₹75000 + ₹10,00,000 से अधिक की इनकम का 20%

    ₹12,50,001 - ₹15,00,000

    ₹187500 + ₹12,50,000 से अधिक की इनकम का 30%

    ₹125000 + ₹12,50,000 से अधिक की इनकम का 25%

    ₹15,00,000 से ऊपर

    ₹262500 + ₹15,00,000 से अधिक की इनकम का 30%

    ₹187500 + ₹15,00,000 से अधिक की इनकम का 30%



  7. ऑनलाइन इनकम टैक्स रिटर्न फॉर्म कितने प्रकार के होते हैं?

    इनकम टैक्स फाइलिंग फ़ॉर्म सात तरह के होते हैं: 

    आईटीआर-1 (सहज): उन निवासियों के लिए, जिनकी कुल आय ₹50 लाख से कम है.

    आईटीआर-2: ₹50 लाख से अधिक की कुल इनकम वाले निवासी व्यक्तियों और गैर-निवासी व्यक्तियों के लिए.

    आईटीआर-3: किसी बिज़नेस या किसी पेशे से होने वाली इनकम के लिए, किसी फर्म में साझेदारी या ₹50 लाख से कम की अनुमानित इनकम के लिए.

    आईटीआर-4 (सुगम): रु. 50 लाख से अधिक की अनुमानित इनकम के लिए.

    आईटीआर-5: व्यक्तियों के जुड़ाव (एओपी) या व्यक्तियों के ग्रुप (बीओआई) और लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप (एलएलपी) के लिए.

    आईटीआर-6: उन कंपनियों के लिए जो इनकम टैक्स अधिनियम, 1961 की धारा 11 के तहत किसी भी टैक्स* छूट का क्लेम नहीं करते हैं.

    आईटीआर-7: इनकम टैक्स* अधिनियम, 1961 की धारा 139 (4A), (4B), (4C), और (4D) के तहत निर्दिष्ट व्यक्तियों और कंपनियों के लिए.

  8. धारा 80C क्या है?

    इनकम टैक्स* एक्ट, 1961 की धारा 80C की मदद से आप निवेश और बचत जैसे एनपीएस, ईएलएसएस फंड, यूनिट-लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान, सुकन्या समृद्धि योजना, आदि से कटौती पर एक फाइनेंशियल वर्ष में ₹1.5 लाख तक की टैक्स* कटौती का क्लेम कर सकते हैं. आप टाटा एआईए लाइफ़ इंश्योरेंस खरीद सकते हैं और अपने लाइफ़ इंश्योरेंस प्रीमियम पर कटौती का क्लेम कर सकते हैं. हालांकि, किसी लाइफ़ इंश्योरेंस की तुलना करें और अपनी ज़रूरतों के हिसाब से कोई उपयुक्त प्लान चुनें.


  9. निष्कर्ष

    आईटीआर फाइलिंग के संबंध में ये 7 सामान्य सवाल हैं. अगर आपके पास भी आईटीआर फाइलिंग को लेकर कोई सवाल है तो उसका जवाब आपको ऊपर मिलेगा. आईटीआर फाइलिंग महत्वपूर्ण है और आपको जल्द से जल्द अपने सभी सवालों का समाधान करना होगा, ताकि आपको किसी भी समस्या का सामना न करना पड़े. इसके अलावा, यह आवश्यक है कि आप इनकम टैक्स* स्लैब, कटौती और छूट के बारे में खुद को अपडेट रखें.

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टाटा एआईए लाइफ इंश्योरेंस

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